sighada | सिंघाड़ा एक पवित्र फल 1

विषय सूची
पवित्र फल सिंघाड़ा sighada
सस्ता सर्व सुलभ तथा औषधीय गुणों से सम्पन्न फल है, जिसका भारतीय समाज में धार्मिक महत्व भी है। इसे पवित्र फल माना जाता है, तथा व्रत अनुष्ठानों में फलाहार के रूप में इसे उपयोग में लिया जाता है। यूरोपीय ओल्डवर्ड का मूल निवासी सिधघांडा ‘ट्रैप्सी” वंश का एकमात्र सदस्य है।
विभिन्न भाषाओं में सिंघाड़ा sighada

नदी और तालाबों के रुके हुए जल में सिंघाड़ा खूब होता है l इस जलीय फल को वानस्पतिक भाषा में ‘“ट्रेपानेटन्स” नाम से जाना जाता है। सिंघाड़े को अंग्रेजी में ‘वाटरचेस्ट नट’, बंगला में ‘जलफल’, तेलगू में “कुब्या कामां’,मलयालम में ‘करामपोलम’ तथा संस्कृत में ‘जलकंटक” कहा जाता है। सिंघाड़ा का धार्मिक द्रष्टि से काफी महत्व है l
रासायनिक संरचना : (प्रति सौ ग्राम)
क्षारजल : 70 ग्राम, कार्बोहाइड्रेटस 4.5 ग्राम, प्रोटीन :3.25 ग्राम इसके अतिरिक्त, सिंघाड़े में वसा, रेशा, खनिज लवण प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते है। कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, मैग्नीज, सोडियम, पोटेशियम, आयोडीन तथा विटामिन ए, बी, और सी जैसे तत्व भी संतुलित मात्रा में उपलब्ध रहते हैं। वैज्ञानिक सिंघाड़े को गेहूँ से भी अधिक पौष्टिक मानते हैं।
आयुर्वेद की दृष्टि में सिंघाड़ा sighada
आयुर्वेद के अनुसार, सिंघाड़ा भारी, शीतल, वायुकारक, मलरोधक, कफनाशक, वीर्यवर्द्धधक और ज्वरनाशक होता है। सिंघाड़ा कई लाभकारी तत्वों से भरपूर एक पौष्टिक फल है। इसका सेवन अतिसार, आंव तथा प्रदर में लाभप्रद है। गर्भ-स्थापना में यह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
सिंघाड़े का धार्मिक महत्व

सिंघाड़ा का धार्मिक द्रष्टि से काफी महत्व है l ऐसी मान्यता है , सिंघाड़े के तीनों कोणों को ब्रह्मा, विष्णु और शिव का प्रतीक माना जाता है l सिंघाड़े के नियमित सेवन से शरीर में ताकत आती है l सिंघाड़े को सुखाकर उसके आटे को भी उपयोग में लिया जा सकता है l व्रत- उपवास में सिंघाड़े के आटे का उपयोग किया जाता है।
विभिन्न रोगों के उपचार में सिंघाड़ा के उपयोगः
स्त्री रोग :
- गर्भाशय की कमजोरी से बार बार गर्भपात होने की स्थिति में गर्भवती स्त्री को एक महीने तक नियमित रूप से सिंघाड़े का सेवन करना चाहिए।
- मासिक धर्म के समय अत्यधिक रक्त स्त्राव होने पर ताजा सिंघाड़ों के सेवन से रक्त स्त्रावकम होता है।
- गर्भवती स्त्री द्वारा सिंघाड़े के नियमित सेवन से गर्भस्थ शिशु को संतुलित आहार प्राप्त होता है l
- सिंघाड़े के आटे का शुद्ध घी में बना हुआ हलुआ खाकर दूध पीने से प्रसव पश्चात की कमजोरी दूर हो जाती है।

अन्य :
- सिंघाड़े के नियमित सेवन से वीर्य का पतलापन दूर होता है तथा वीर्य में शुकाणुओं की वृद्धि होती है।
- सिंघाड़े की बेल को पीसकर लेप करने से शरीर की जलन मिटती है।
- सिंघाड़े में आयोडीन की अधिकता से यह टांसिल व गले सम्बन्धी रोगों में उपयोगी है।
- सिंघाड़े के आटे में नीबू का रस मिलाकर मलहम के रूप में दो बार लगाने से दाद ठीक हो जाते हैं।
- दो-दो तोला सिंघाड़े का आटा सुबह- शाम मीठे दूध के साथ लेने से पौरूष में वृद्धि होती है।
- दाह, ज्वर ,रक्तपित्त अथवा बेचैनी से पीड़ित व्यक्ति को प्रतिदिन 5-20 ग्राम सिंघाड़े के रस का सेवन करना चाहिए।
- गर्मियों में अधिक गर्मी के कारण बच्चों को बार- बार नाक से खून बहने पर सिंघाड़े खिलाने व रस पिलाने से बहुत लाभ होता है l
- नींबू के रस में सिंघाड़े को घिसकर लगाने या पीसकर लेप करने से दाद की विकृति नष्ट होती है l
- दिल की धड़कन तेज होने और घबराहट होने पर सिंघाड़े का सेवन करने से अत्यधिक लाभ होता हैl
- सिंघाड़े के छिलकों को पत्थर पर घिसकर या सील पर पीसकर सूजन वाले भाग पर लेप करें। शीघ्र ही सूजन दूर हो जाएगी l
परहेज / सावधानियां :
- सिंघाड़ा तथा इसका आटा पाचन में भारी होता हैl
- सिंघाड़े अधिक मात्रा में सेवन करने से मूत्रावरोध, पेटदर्द, अजीर्ण आदि विकार होने की संभावना रहती हैl
- सिंघाड़ा वायु व कफ में वृद्धि करने वाला होता है अतः वात व कफ प्रकोप से ग्रसित व्यक्तियों को इसका सेवन नहीं करना चाहिएl