Stridhan | स्त्रीधन 1*

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स्त्रियों की आर्थिक स्थिति
किसी भी समाज की प्रगतिशीलता का अनुमान उस समाज में स्त्रियों की स्थिति को देखकर लगाया जा सकता है। स्त्री-पुरूष नैसर्गिक रूप से एक दूसरे के पूरक हैं , किंतु पुरूष ने अपने बलशाली होने का अनुचित लाभ उठाते हुए इस प्राकृतिक नियम की अवहेलना की और औरत के स्वांगीण शोषण को अपना अधिकार मान लिया। इस अर्थ-प्रधान युग में जब कि स्त्री को दसरे दर्जे की नागरिक मानने की मानसिकता बढ़ती जा रही है, “दहेज” रूपी औजार के माध्यम से औरत की अस्मिता और मानवीय गरिमा के साथ मनचाहा खिलवाड़ किया जा रहा है
। दहेज-यातनाओं के इस अंधे दौर में बहू को जलाने या उसे आत्महत्या के लिए विवश करने संबंधी समाचार अब इतने सामान्य हो गये हैं कि उनकी वीभत्सता भी अब हमारी संवेदना को नहीं झकझोरती। नारी–सुधार के तमाम सरकारी और गैर-सरकारी नारों के बावजूद औरतों के साथ गैर इंसानी सलूक बदस्तूर जारी है। ये हालात हमारे तथाकथित समाज के आइनेदार होने के साथ ही औरत के अधिकारों की नई व्याख्या की मांग करते हैं।

औरत की आर्थिक पराधीनता
दरअसल औरत को इन नागवार हालातों में पहुंचाने के लिए जो चीज सबसे ज्यादा जिम्मेदार है, वह है-समाज में औरत की दयनीय आर्थिक-स्थिति। आज औरत लगभग पूरे तौर पर आदमी के ऊपर आश्रित है। उसकी यही आर्थिक पराधीनता पुरूष को उसके ऊपर अत्याचार करने को उकसाती है। स्त्रियों की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ता प्रदान करने के वास्ते समय-समय पर कानूनी प्रावधान किये जाते रहे हैं।
मनु-स्मृति के अनुसार ‘स्त्री धन’
महिलाओं को आर्थिक आत्मनिर्भरता प्रदान करने में ‘स्त्री-धन’ का महत्वपूर्ण स्थान है। वस्तुतः स्त्रीधन की अवधारणा को हमारे सांस्कृतिक मूल्यों में बहुत पहले से स्वीकार किया गया है। स्त्रीधन से संबंधित अवधारणा का सर्वप्रथम उल्लेख आदि-विधिवेत्ता मनु के सुप्रसिद्ध ग्रंथ मनु-स्मृति में मिलता है। मनु-स्मृति में कहा गया है :-
“अध्यग्नयध्या वाहनिकम् दत्तम च प्रती कर्मणि।
मातृ, पितृ, भ्रातृ प्राप्तं षडविधि स्त्रीधनं स्मृतम् ॥ ( 9: 194 )
अर्थात विवाह के समय अग्नि के समक्ष दी जाने वाली भेंट, पिता के घर से पति के घर की ओर प्रस्थान करते समय “दी गई भेंट, सास व ससुर द्वारा दी गई भेंट तथा माता-पिता व भाई द्वारा दी गई भेंट ‘स्त्री धन’ के अन्तर्गत मानी गई है।
मनु-स्मृति में आगे कहा गया है कि विवाह के पश्चात पति अथवा माता-पिता द्वारा दी गई भेंट भी स्त्रीधन है।
कात्यायन ने स्त्री द्वारा स्वयं के शिल्प, कौशल व श्रम द्वारा अर्जित सम्पत्ति तथा अन्य संबंधियों द्वारा स्नेहवश दी गई भेंट को पति-पत्नी की सामूहिक स्वामित्व की संपत्ति बताया है। देवल के अनुसार भरण-पोषण, आभूषण और अन्य लाभ स्त्रीधन के अंतर्गत आते हैं।
याज्ञवलक्य ने विवाह आदि के समय प्राप्त तथा माता-पिता, भाई व पति द्वारा दी गई भेंट के अलावा पति द्वारा दूसरा विवाह कर लेने पर उसकी एवज में प्राप्त संपत्ति तथा किसी संबंधी द्वारा दिए गए उपहारों को भी स्त्रीधन के अन्तर्गत॑ माना है।

देश में स्त्रीधन के संबंध में कानूनी प्रावधान
देश में स्त्रीधन के संबंध में कानूनी प्रावधान उपरोक्त अवधारणा पर आधारित रहे तथा इसे हिन्दूओं की स्वीय विधि के अन्तर्गत माना गया। हिंदू विवाह अधिनियम-4956 के तहत यह प्रावधान किया गया कि स्ट्रीधन स्त्री की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं मानी जावेगी तथा विवाह के पश्चात स्त्रीधन पार्टनरशिप फर्म का रूप ले लेगा। इस कानूनी प्रावधान के चलते स्त्रियों के अधिकारों को काफी आघात लगा। इसके अनुसार विवाह के पश्चात स्त्री की सारी संपत्ति, स्त्रीधन तक, पति-पत्नी के सामूहिक स्वामित्व की संपत्ति हो जाती है। कानून की इस प्रतिगामी व्याख्या ने पहले से ही शोषित और दलित स्त्रियों में और भी अधिक परेशानी पैदा की
इस संबंध में उच्चतम न्यायालय ने कुछ समय पूर्व अपने एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय में स्त्रीधन के संबंध में प्रचलित मान्यताओं का खंडन करते हुए एक सर्वथा नई व्याख्या प्रस्तुत की। सन् 1997 के पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के एक निर्णय को निरस्त करते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह मत प्रतिपादित किया कि किसी भी स्त्री को विवाह के समय अपने माता-पिता और भाई आदि से दहेज के रूप में प्राप्त होने वाले समस्त गहने, कपड़े तथा अन्य वस्तुओं पर उसका व केवल उसका अधिकार रहेगा।
पिता अथवा पति व उसके घर वाले स्त्रीधन के केवल न्यासधारी हो सकते हैं किंतु उस संपत्ति की वास्तविक स्वामिनी स्त्री ही होगी। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी भी विवाहित स्त्री को अपनी निजी संपत्ति उसके पति या पति के परिवारजनों के आधिपत्य में हो तो भी उसकी एक मात्र स्वामिनी वही रहेगी तथा उसके मांग करने पर उसे उसकी संपत्ति लौटानी होगी। यदि वह स्त्रीधन लौटाने से इंकार करते हैं तो उन्हें अपराधिक न्यास भंग के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 405 तथा 406 के तहत अभियोजित कर दंडित किया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार स्त्रीधन की व्याख्या
सर्वोच्च न्यायालय ने स्त्रीधन में दहेज के अलावा विवाह के समय स्त्री को प्राप्त समस्त धन राशि को भी शामिल किया। पति के घर में बड़े बुजुर्गों से प्राप्त होने वाली ‘पैर-छुआई” की रकम को भी स्त्रीधन माना गया | सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा में एक मील का पत्थर है और इसने सामाजिक न्याय के प्रति न्यायपालिका की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया है| दहेजलोलुप लोगों के खिलाफ स्त्रीधन की इस नवीन व्याख्या का उपयोग महिलाओं के आत्मविश्वास में वृद्धि करेगा।

महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों
आज आवश्यकता इस बात की है कि महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति सजग व जागरूक हों | दहेज समस्या एक बहुआयामी समस्या है, इससे सामाजिक स्तर पर संघर्ष किया बेहद जाना जरूरी है लेकिन साथ ही कानूनी प्रावधानों द्वारा प्रदत्त ‘स्त्रीधन’ संबंधी अधिकारों का उपयोग करना भी दहेज के लोभी लोगों को सबक सिखाने के लिए अनिवार्य है।
पुरूषों से समानता के अधिकार की मांग को ऐसे फैसले बहुत बल प्रदान करते हैं। महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार के लिए सबसे जरूरी शर्त है उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना। स्त्रीधन का समुचित उपयोग इस दिशा में महिलाओं के लिए एक सुदृढ़ आधार सिद्ध हो सकता है। औरतों को समझना चाहिए कि स्त्रीधन उनका अपना अधिकार है। यह किसी का कोई एहसान या भीख नहीं है।