बाल कहानी – सबक चूरन का

इंटरवल बीतने की घंटी बजी। चूरन में लिपटी जीभ को दांतों पर फिराता राजीव मस्ती से झूमता-गुनगुनाता कक्षा में घुसा।
कक्षा में कुछ लड़के आ चुके थे। कुछ तो इंटरवल में बाहर गये ही नहीं थे। ये उस टाईप के लड़के थे, जिन्हे बेंच से चिपके रहने में परम आनंद मिलता था। घर से निकले तो स्कूल की बेंच से चिपक गये। किसी तरह बेंच से छूटे तो घर गये। फिर घर से निकलने का नाम नहीं। ये दो ही चीजों से संबंध रखते थे – टीचर जी और पुस्तक जी से।
राजीव प्रायः उनका मजाक उड़ाता था -‘‘आलोक, भगवान को क्या जवाब देगा? भगवान अवश्य पूछेंगे कि तुझे धरती पर भेजा था सब कुछ करने को, सब कुछ खाने-पीने को। तूने फकीरा का चनाजोर गरम नहीं खाया, बनारसी चाट वाले के चटपटे गोलगप्पे गले से नहीं उतारे, किसी टीचर की नकल नहीं उतारी। सारा जीवन यों ही नष्ट करके चला आया!‘‘
लड़के हंस पड़ते। आलोक झेंप जाता।
उस दिन भी पढ़ाकू टाइप के लड़के सदा की भांति गंभीर बैठे थे। उन्होंने उसके गाने की लाईन को सुनकर भी अनसुना कर दिया। राजीव से यह सहन नहीं हुआ। कान पर हाथ रखकर चनाजोर के कागज को हवा में फड़फड़ाते हुए धीमी गति से भांगड़ा करते हुए उसने गीत की लाईन को दोहराया-‘‘ कांटा लगा……हाय लगा……!‘‘
कुछ लड़के भीतर आ रहे थे। सहसा राजीव को एक और आइडिया सूझा। पुस्तक खोलते आलोक का हाथ पकड़ वह लड़की जैसे स्वर में गा उठा -‘‘पुस्तक न खोल, हवा तेज है, विद्या उड़ जाएगी तो टीचर की नौकरी जायेगी! पुस्तक न खोल…..‘‘
आलोक का चेहरा बहुत गंभीर हो गया। उसने इशारे से कुछ कहने की कोशिश की। लेकिन राजीव ने कुछ और ही मतलब समझा। बोला, ‘‘क्या कहना चाहता है? यही न कि टीचर जी से मेरी शिकायत कर देगा। मुझे बेंच पर खड़ा करवा देगा।‘‘
आलोक का चेहरा लाल हो गया- ‘‘मैं….मैं कुछ भी तो नहीं कह रहा…..‘‘
राजीव अपनी ही मौज में था। वह बोला, ‘‘चल प्यारेलाल, तू भी क्या याद करेगा। टीचर मन रखने का मन रखने को मैं मेज पर चढ़ खुद ही मुर्गा बन जाता हूं।‘‘
…..और राजीव झटपट मेज पर चढ़कर मुर्गा बन गया। कक्षा में ‘कुकड़ूं कूं‘ की की बांग गूंज उठी। लेकिन लड़कों के चेहरे अपनी किताबों पर झुक गये।
राजीव को कुछ आश्चर्य हुआ। वह मुर्गा बना। उसने ‘कूकडूं कूं‘ की, किन्तु कक्षा में अट्टहास नहीं हुआ। घंटी बजे भी कुछ देर हो गयी थी। अभी तक उसे राजेश या मनोज या अशोक से टीचर जी के आने का संकेत नहीं मिला था।
वह टेबल से उतरा। उसने राजेश, मनोज के चेहरों पर नजर डाली। लेकिन उन दोनों के चेहरे गंभीर थे। उसे लगा कि कहीं कुछ गोलमाल अवश्य है। दूसरे ही क्षण उसने सोचा कि हो सकता है, टीचर जी अस्वस्थ हो गये हों। टीचर जी अस्वस्थ! इस आइडिया से उसके शरीर में बिजली दौड़ गयी। वह बोलने लगा-‘‘ यह आकाशवाणी है। अब आप राजीव सक्सेना से स्पेशल न्यूज बुलेटिन सुनिए। अभी-अभी समाचार मिला है कि सदानंद पांडे जी कल शाम किसी विवाह पार्टी में दो किलो बर्फी खा जाने के कारण अस्वस्थ हो गये हैं और इस समय क्लास लेने की स्थिति में नहीं हैं। उनके शुभचिंतक छात्रों से अनुरोध है कि उनके घर चूरन की गोलियां, चूरन की शीशियां भिजवायें!‘‘
‘‘चूरन की गोलियां, चूरन की शीशियां घर भिजवाने के कष्ट की आवश्यकता नहीं, पांडे जी गोलियां लेने को कक्षा में स्वयं उपस्थित हैं।‘‘ टीचर जी सदानंद पांडे ने उठते हुए कहा। वे अभी तक चुपचाप छात्रों के बीच बैठे राजीव की हरकतो का आनंद ले रहे थे।
राजीव को लगा कि कोई भूत देख लिया है। उसकी आंखे आश्चर्य से बाहर निकल आयीं। कक्षा में जोर का ठहाका लगा। वह पसीना-पसीना हो गया था।
मंद-मंद मुस्कराते पांडेजी ने उसे पकड़ कर सीट पर बिठा दिया–‘‘नेवर माइंड! एक बात याद रखो, हंसाई का पात्र नहीं बनना चाहते हो, तो ऐसा कुछ मत करो जो प्रकट हो जाने पर तुम्हारी हालत खस्ता कर दे.. आज का यह प्रसंग तुम्हारे लिए चूरन साबित होना चाहिए। अनुशासित करने वाला चूरन। क्यों?‘‘
सीमा लांघने पर जिस चूरन की आवश्यकता होती है, वह राजीव को मिल गया था।