rasila fal shahtut | रसीला फल शहतूत

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तनमन को ठंडक पहुचता शहतूत shahtut
कुदरत ने आदमी को मौसम के मुताबिक कई किस्मों के फल और सब्जियां दी हैं, जो उसे मौसम के तेवर से जूझने की शक्ति देती हैं। तपती गर्मियों में तन-मन को ठंडक और मिठास पहुंचाने वाला स्वास्थ्यवर्धक फल शहतूत मनुष्य को प्रकृति का अनुपम उपहार है !
शहतूत मूलतः “फिग” कुल का पेड़ है, इस परिवार के अन्य सदस्य गूलर, कटहल, अंजीर, पाकड आदि हैं। शहतूत का उद्गम स्थल चीन को माना जाता है। जापान, फारस होता हुआ यह आज सारे विश्व में पाया जाता है। ‘तूत” या ‘शहतूत” फारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ मिठास होता है। इसे अंग्रेजी में ‘मलवारी” कहते हैं, जबकि इसका लेटिन नाम “मोरस नाइग्रा” है।
रस भरा शहतूत
शहतूत का गिरीरदार फल पांच सेंटीमीटर तक लम्बा होता है, प्रारंभ में यह हरे रंग का होता है, पर पकने पर यह कमशः कत्थई, हल्का काला और काला रंग प्राप्त कर लेता है। शहतूत के फल रस भरे होते हैं, हाथ का स्पर्श होते ही इनमें से रस निकलने लगता है।
रेशम उत्पादन में भी सहायक शहतूत shahtut
शहतूत का उत्पादन सिर्फ फल के लिए नहीं किया जाता बल्कि रेशम का उत्पादन करने वाले कीट कोसा के भोजन के रूप में शहतूत की पत्तियों का ही इस्तेमाल होता है, इसलिए रेशम उत्पादन की द्रष्टि से भी शहतूत की खेती की जाती है।
रसायनिक संरचना : (प्रति सौ ग्राम )

फास्फोरस : 30 मिलीग्राम, कारमीन : 2.3 मिलीग्राम, आयरन : 30 मिलीग्राम, विटामिन सी : 1. मिलीग्राम, प्रोटीन : 87.5 ग्राम, वसा : 11 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट : 10 ग्राम।
आयुर्वेद के अनुसार, शहतूत पाचक, स्वादिष्ट और मधुर तथा प्रकृति में शीतल व पित्त व वायुनाशक होता है। इसके अतिरिक्त गर्मी के कारण होने वाले रोग यथा बार-बार प्यास लगना, नकसीर, पेट में जलन आदि में शहतूत का सेवन शीघ्र राहत प्रदान करता है।
विभिन्न रोगों के उपचार में शहतूत shahtut का उपयोग :
रक््तविकार
- शरीर कीं गर्मी कम करने तथा रक्त शुद्धि के लिए गर्मी के मौसम में दोपहर को शहतूत खाएं ।
- शरीर से रक्त बहना, नाक से खून निकलना जैसे रोगों में शहतूत का उपयोग लाभप्रद है।
मूत्रविकार :
- गर्मी में गहरा पीला पेशाब आने पर शहतूत के रस में मिश्री मिलाकर पीना चाहिए।
प्यास :
- अधिक प्यास लगने पर सुबह व शाम पर्याप्त मात्रा में शहतूत का सेवन करना चाहिए।
- शहतूत गले की खुश्की को दूर कर तनमन को शीतलता पहुंचाती है।
अन्य

- टांसिल तथा मुंह में छाले होने पर शहतूत का ताजा रस पीना चाहिए।
- यह जुकाम में भी लाभकारी है।
- गले की खराश या गला बैठने पर पच्चीस ग्राम अच्छी तरह पका हुआ शहतूत दिन में चार बार खाएं।
- पागलपन, मष्तिष्क की गर्मी, उन््माद आदि रोगों के मरीजों को लंबे समय तक दिन में 3 बार आधा कप शहतूत का शर्बत देने से आशातीत लाभ होता है।
- ग्रीष्मकाल में सौंफ, काली मिर्च, खरबूजे के बीज, बादाम, मुनक्का को पीसकर ठंडाई बनाए और इसमें शहतूत का रस मिलाकर सेवन करे शारीरिक गर्मी दूर होती है।
- मुंह के छाले होने पर एक कप पानी में एक चम्मच शहतूत का रस मिलाकर गरारे करें।
- पलंग पर शहतूत के पत्ते बिछाने से खटमल दूर चले जाते हैं।
- पेट में कीड़े होने पर शहतूत की दो पत्तियों को पीसकर शहद मिलाकर सेवन करना चाहिए
- त्वचा रोग खुजली, दाद आदि पर शहतूत के पत्तों का रस लगाने से लाभ पहुंचता है।
- नियमित रूप से शहतूत के रस का सेवन करने से पाचन संस्थान सक्रिय व मजबूत होता है
सावधानियां / परहेज :
- गुणकारी होने पर भी शहतूत का इस्तेमाल सीमित मात्रा में ही किया जाना चाहिए।
- शहतूत के ताजा फलों का ही उपयोग करें अधिक पक जाने पर शहतूत खराब होने की आशंका रहती है।