mattha | गर्मियों में उपयोगी मट्ठा

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आयुर्वेद में मट्ठा mattha की महिमा
मट्ठा (छाछ ) सेवन करने वाला कभी रोगी नहीं होता। छाछ से नष्ट हुए रोग फिर नहीं होते। जिस तरह देवताओं के लिए अमृत उपयोगी है, उसी तरह पृथ्वी पर मट्ठा हितकारी है, ऐसा आयुर्वेद के ग्रंथों का कहना है। मट्ठे की विशेषताओं पर प्रकाश आधुनिक खोजों से भी पड़ा है। मट्ठे को हृदय रोगों, कोलेस्ट्रोल, कोलाइरिस जैसे रोगों के लिए भी बहुत अच्छा पाया गया है।पेट के समस्त रोगों, संग्रहणी, बवासीर, पेचिश जैसे असाध्य रोग बिना मट्ठे के सेवन के कभी भी ठीक नहीं हो सकते ।
बंगसेन लिखते हैं कि `संग्रहनी रोगों में मट्ठा मल रोकने वाला , हल्का अग्निदीपक , त्रिदोषनाशक है।’ आयुर्वेद के विभिन्न ग्रंथों के अनुसार, मटूठा उत्तम, बलकारक, पाक में मधुर, अग्निदीपक, वातनाशक, त्रिदोषनाशक, बवासीर, क्षय, कशला, ग्रहणी दोषनाशक है।

परंतु पेट में घाव होने पर खट्टा मटूठा , मूत्र दाह, मूर्च्छा के रोगियों को सेवन नहीं करना चाहिए।आधा दही एवं आधा पानी से बना मट्ठा औषधि रूप में उत्तम माना गया हैं। हाथ से या मिक्सी में डालकर मथने के बाद मक्खन निकालने के बाद बचा पदार्थ ही मट्ठा या छाछ कहलाता है। जिसका पूरा मक्खन निकाल लिया गया हो, वह मट्ठा विशेष पथ्य हल्का होता है। जिसमें आधा मक्खन निकालें, वह मद्ढा भारी, वीर्यवर्द्धक एवं कफनाशक होता है।

आधा दही, आधा पानी से बना मट्ठा mattha अधिक उपयोगी
मक्खन सहित मट्ठा बल-वीर्यवर्द्धक एवं भारी होता है। दही में चौथाई पानी डालकर मथने से भी मट्ठा तैयार होता है। यह भी उत्तम है परंतु आधे जल वाला मट्ठा हल्का होता है। शरीर बहुत मोटा हो गया हो, तिल्ली, लीवर बढ़ा हो, मुंह का स्वाद खराब हो, भूख कम जगती हो, अजीर्ण, मंदाग्नि आदि दोषों में मट्ठा हितकर है।
मट्ठा सेवन का सही समय प्रातः या दोपहर में भोजन के बाद है। रात में मट्ठा सेवन वर्जित है। वात रोगों में मट्ठा सोंठ, सेंधा नमक, अजवाईन से, पित्त रोगों में मीठा मट्ठा तथा कफ रोगों में त्रिकुट चूर्ण के साथ मट्ठा सेवन का विधान हैl
विभिन्न रोगों में मट्ठा mattha के उपयोग

छाछ के चंद औषधिय प्रयोग :-
- पतले दस्त, गैस, मंदाग्नि, अपच, बंधा मल दिन में कई बार होने पर मट्ठे को दो चम्मच लवण भास्कर चूर्ण के साथ सेवन करें।
- सोंठ का चूर्ण या अजवाईन चूर्ण, एक छोटे चम्मच ( 5 ग्राम ) को मामूली काला नमक के साथ प्रात: दोपहर एक गिलास मट्ठे से सेवन करने पर बवासीर, संग्रहणी, अतिसार में लाभ होता है।
- खूनी बवासीर या बादी में प्रातः छाछ सेंधा नमक मिलाकर सेवन करें। छाछ से नष्ट मस्से दुबारा नहीं होते हैं।
- काली मूसली का चूर्ण 40 ग्राम या काली मिर्च, चीता, काला नमक का समभाग चूर्ण दस ग्राम प्रातः छाछ में मिलाकर पीने पर पुरानी से पुरानी संग्रहणी चली जाती है।
- सोंठ, नागर मोथा, बायविडंग को बराबर मात्रा में चूर्ण कर लें। दो चम्मच की मात्रा में चूर्ण दोपहर के भोजन और प्रातः के नाश्ते में छाछ के साथ लगातार कुछ दिन लेने से भी संग्रहणी, पेट के कीड़े, पेट की गुड़गुड़ाहट में अत्यंत लाभ होता है।
- ज्यादा मूंगफली सेवन करने से यदि पेट भारी लगे तो तुरंत सेंधा नमक से मठ्ठा लें।
- प्रातः बासी मुंह भुने जीरे और सेंधा नमक के साथ मद्ठा सेवन करने से समस्त उदर विकार, पेट दर्द, अतिसार, संग्रहणी, बवासीर, कोलाइटिस सभी रोग नष्ट होते हैं।
- किसी प्रकार की बवासीर, कोलाइटिस, कभी पतले दस्त, कभी शौच न होना जैसी समस्याओं में करीब दो से तीन माह तक एक चम्मच पिसी अजवाईन को हल्के काले नमक के साथ ताजा मट्ठा एक गिलास की मात्रा में प्रातः एव दोपहर में पिलाएं। सभी रोग जड़ से चले जाएंगें।
- जीरा, पीपल, सोंठ, काली मिर्च, अजवाइन, सेंधा नमक के समभाग चूर्ण में से दो चम्मच की मात्रा प्रातः दोपहर एक या आधे गिलास ताजी छाछ से सेवन करने से वायु गोला, तिल्ली, गैस भूख की कमी, अपच, अजीर्ण, बवासीर, संग्रहणी, सभी रोग नष्ट होते हैं।
- मट्ठे से बाल धोना, चेहरे पर मलना या हाथ-पांवों में मलने से सभी अंग चमकदार एवं लावण्ययुक्त हो जाते हैं।
- बच्चों को अतिसार हो तब भी मट॒ठा लाभप्रद है।
- आम की छाल मठ्ठा में पीसकर नाभि पर लेप करने से भी दस्त बंद हो जाते है l
