Passbook and one Week series of jugglery | पासबुक और वन वीक सीरिज का मायाजाल

स्कूलों और कॉलेजों की वार्षिक परीक्षाएँ प्रारम्भ हो चुकी हैं। हर शहर कस्बे और गांव में पुस्तकों की दुकानों पर गेस-पेपर्स, पांस बुक्स, वन-डे सीरीज वन-वीक सिरीज और श्योर सक्सेस जैसी पुस्तकों की बिक्री बढ़ती जा रही है l हर इम्तिहान विद्यार्थियों के वास्ते एक मुश्किल और प्रतिस्पर्धात्मक चुनौती की भांति होते हैं। प्रत्येक छात्र की अभिलाषा होती है कि वह अच्छे अंकों में परीक्षा उत्तीर्ण करे। इसके लिए वह अध्ययन से सम्बद्ध प्रत्येक उपलब्ध साधन अपनाने को तत्पर रहता है। हर प्रकार की परीक्षा से पूर्व विद्यार्थी अपने अध्ययन को अंतिम रूप देना चाहता है।
इसके अतिरिक्त , विद्यार्थियों का एक समूह पाठ्य-पुस्तकों के व्यापक और नियमित अध्ययन में दिलचस्पी नहीं रखता है। वह आज परीक्षा उत्तीर्ण करके अगली कक्षा में पहुंचने का कोई शार्ट-कट रास्ता चाहता है विद्यार्थियों के इस मनोविज्ञान को पास-बुक्स, गाइडों और सीरिजों के प्रकाशकों ने भली-भांति समझा और परखा। नतीजतन, आज विद्यार्थियों के सामने शिक्षा और सफलता का शॉर्ट-कट प्रस्तुत करते हुए पूरे पुस्तक बाजार पास-बुक्स, गाइडों , गैस-पेपर्स और वन-वीक सीरिजों से अटे पड़े हैं और एक लाभदायक उद्योग के रूप में यह धंधा दिन दूनी रात चौगुनी गति से फल-फूल रहा है। इस मुनाफे के धंधे में रोज नए-नए प्रकाशक शरीक हो रहे हैं और अपनी तिजोरियां भर रहे हैं।
विषय सूची
हमारी शिक्षा पद्धति दोषी Passbook and one Week series of jugglery

शिक्षा जैसे पवित्र संस्कार को इस प्रकार दूषित करने के लिए वस्तुतः हमारी शिक्षा पद्धति सर्वाधिक दोषी है। शिक्षा प्रणाली का मुख्य ध्येय विद्यार्थी को डिग्री भर देना रह गया है। ऐसी सूरत में छात्र येन-केन प्रकारेण मात्र उत्तीर्ण होना होता है। बिना मेहनत और अध्ययन के पास- होने का अचूक नुस्खा ये पास बुक्स और गाइडें उन्हें तुरन्त आकृष्ट करतीं हैं। आसानी से उपलब्ध हो जाने वाले रामबाण तरीके के कारण छात्र भारी भरकम पाठ्य पुस्तकें पढ़ने की जहमतनहीं उठाना चाहता। पास-बुक्स और सीरिजों में प्रक्राशित आधी-अधूरी और अधकचरी जान॒कारी के क़ारण आजकल विद्यार्थियों -की प्रबुद्धता के स्तर में गिरावट आती जा रही है।
विषय की गंभीरता और व्यापक्ता की जो पकड़ मूल पाठ्य-पुस्तकों में होती हैं, वह किसी भी सूरत में पास-बुक्स और गाइडों में नहीं हो सकती। अतः महज पास करवा देने वाली ये पुस्तकें विधार्थियों की प्रबुद्धता के बहुमुखी आंतरिक विकास के मार्ग को अवरुद्ध करती ही हैं साथ ही उसके व्यक्तित्व – निर्माण की प्रक्रिया में भी बाधक सिद्ध होती हैं l
गंभीर विद्यार्थियों को नुकसान पहुंचाती हैं गाइड Passbook and Forest Week series of jugglery
नियमित और गंभीर अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को भी ये पुस्तकें बेहद नुकसान पहुंचाती हैं। वर्ष भर मेहनत करने के बावजूद वह उन छात्रों के समकक्ष ही अंक प्राप्त कर पाते हैं, जिन्होंने केवल परीक्षा के एक माह पूर्व पास-बुक्स से अध्ययन कर परीक्षा उत्तीर्ण की है। यह स्थिति पढ़ने वाले विद्यार्थियों को भी नियमित मेहनत करने से निरूत्साहित करती है। उनके मन में यह भावना पैदा हो जाती है कि पाठ्य पुस्तकों से अध्ययन करके अपना समय व्यर्थ नष्ट करने के बजाय पास-बुक्स से भी आसानी से परीक्षा पास की जा सकती है।
इस समस्या के विरुद्ध कोई कानून नहीं
भावी पीढ़ी की बौद्धिक क्षमता को कुंठित करने वाली इन पुस्तकों पर रोक या पाबन्दी लगाने वाला कोई कानून सरकार के पास उपलब्ध नहीं है और न ही शासन व शैक्षिक प्रशासन इस समस्या के प्रति गंभीर है। किसी गाइड या पास-बुक्स में किसी स्तरीय लेखन की बात सोचना बिलकुल फिजूल है, क्योंकि ऐसी अधिकांश पुस्तकें महज आर्थिक स्वार्थ और विशुद्ध व्यवसाय के दृष्टिकोण से लिखी जाती हैं और इनके लेखकों को विद्यार्थियों के दीर्घकालीन हितों से कोई सरोकार नहीं होता।
उनका तो एक मात्र लक्ष्य विद्यार्थी को परीक्षा में उत्तीर्ण होने का आसान व सरलतम रास्ता बताना होता है। ऐसी सूरत में पुस्तक की भाषा, विषय-वस्तु आदि के स्तर पर को टिप्पणी नहीं करना ही उचित है।

इस धंधे में बेहताशा मुनाफा
पास-बुक, गाइड और वन-वींक सिरीज का प्रकाशन एक अत्यन्त मुनाफे का सौदा है। एक अनुमान के मुताबिक, वन-वीक सिरीज की एक प्रति की लागत लगभग तीन रूपए आती है। इसे प्रकाशक द्वारा विक्रेता को चार अथवा साढ़े चार रूपए में बेचा जाता है। विक्रेता इस पर सौ प्रतिशत से भी अधिक मुनाफा कमाते हुए विद्यार्थी को मुद्रित मूल्य से कम में दस रूपए तक बेचते हैं। अधिक पृष्ठों की गाइडों और पास-बुक्स का मुनाफा इसी अनुपात में बढ़ता जाता है।
पास-बुक्स और गाइडों की यह बीमारी दक्षिण भारत के बजाय उत्तर भारत में अधिक व्यापक है। खासतौर पर हिन्दी भाषी प्रदेशों राजस्थान, मध्यप्रदेश , उत्तरप्रदेश, बिहार, हरियाणा आदि में यह एक उद्योग के रूप में विकसित हो चुका है। अकेले राजस्थान की राजधानी जयपुर में पच्चीस विभिन्न प्रकार और नामों की पास-बुक्स, लगभग चालीस वन-वीक सिरीज और एक सौ दस विभिन्न किस्मों के गैस-पेपर्स प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित किए जाते हैं।

शिक्षक वर्ग भी कम दोषी नहीं

कई बार पास-बुक्स और गेस-पेपर्स में प्रकाशित प्रश्न शब्दश: परीक्षा के प्रश्न-पत्र में आ जाते हैं। इसके पीछे परीक्षा के प्रश्न-पत्र तैयार करने वाली समितियों और प्रकाशकों की मिली- भगत होना बताया जाता है। ऐसी स्थिति में पास-बुक्स और गेस-पेपर्स की मांग का बढ़ना आश्चर्यजनक नहीं कहा जा सकता। गाइडों और पास-बुक्स की यह संस्कृति पिछले तीन दशक से विद्यार्थी समुदाय में अपनी जड़ें जमा चुकी है। इस प्रवृति के लिए मात्र छात्र दोषी नहीं है। कक्षाओं में शिक्षकों का अध्यापन से जी चुराना भी इसका एक बहुत बड़ा कारण है कई बार तो खुद शिक्षक को किसी विशेष पासबुक या सीरिज की सिफारिश करते भी पाया गया हैl