कहानी शब्दकोश के जन्म की

आज जब हमें किसी कठिन शब्द के अर्थ, भावार्थ या मायने जानने की जरूरत पड़ती है, तो हम तत्काल शब्दकोष का सहारा लेते हैं। ‘शब्दकोष‘ अथवा ‘डिक्शनरी‘ आज जिंदगी का एक आम हिस्सा बन चुकी है। विभिन्न भाषाओं के विभिन्न आकार-प्रकार में आज शब्दकोष सहज ही उपलब्ध हैं। पाकेट डिक्शनरी से वृहद शब्दकोष तक आज जिज्ञासु लोगों की ज्ञान-पिपासा शांत करते हेतु मौजूद हैं।
क्या आपने सोचा है कि संबंधित भाषा के हजारों लाखों शब्दों और उनके सही अर्थो को एक स्थान पर संकलित करने की यह नितांत मौलिक परिकल्पना आखिर थी किसकी? कौन है वह शख्स, जिसने सर्वप्रथम इस कठिन और दुष्कर कार्य को करने के लिए शब्दों का संग्रह किया? आइए, आज हम आपको शब्दकोष के जनक से मिलवाते हैं।
अठारवीं शताब्दी के शुरूआती दौर में जब लगभग पूरे विश्व में शिक्षा और साहित्य का विकास अपने चरम बिंदु पर था, मुद्रण-कला के आविष्कार और छापेखानों की शुरूआत ने ज्ञान-प्राप्ति के साधनों में सचमुच क्रांति पैदा कर दी थी। लोगों की जिज्ञासा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। ऐसे दौर में सितम्बर 1709 मेें लिचफील्ड में एक पुस्तक विक्रेता के घर एक बालक का जन्म हुआ। उसका नाम रखा गवा-सैमुअल जानसन। जानसन के पिता एक निर्धन व्यक्ति थे। बचपन में जानसन बहुत अधिक बीमार पड़ गया। जब उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ, तो उसके पिता उसे लंदन ले गये। लम्बे उपचार के बाद जानसन ठीक हो तो गया, किंतु उसका चेहरा स्थायी विकृत हो गया। यहां तक कि उसे अपनी एक आंख से भी हाथ धोना पड़ा। जानसन की जिंदगी का काफी बेशकीमती हिस्सा बीमारी की भेंट चढ़ गया। इसके अतिरिक्त पैसों के अभाव ने भी उसकी शिक्षा को प्रभावित किया।
1728 में उन्नीस वर्ष की आयु में जानसन अपने एक अमीर मित्र द्वारा सहायता का आश्वासन पाकर आॅक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अध्ययन हेतु जा पहुंचा। किंतु मित्र द्वारा सहायता नहीं दिए जाने के कारण जानसन को आक्सफोर्ड से बिना स्नातक की उपधि लिए वापस लौटना पड़ा।
लिचफील्ड लौटने के बाद आजीविका की समस्या जानसन के आगे मुंह बाए खड़ी थी। उसने 1736 में एडिवल में एक स्कूल की शुरूआत की। लेकिन उसे मात्र तीन छात्र मिल पाए। अध्यापकीय जीवन से जानसन को भले ही आर्थिक लाभ न हुआ हो, किंतु उसे अपने तीन विद्यार्थियों में से एक डेविड गैरिक के रूप में अच्छा सहयोगी प्राप्त हुआ। यह वही गैरिक था, जो बाद में विश्वविख्यात अभिनेता बना।
स्कूल की असफलता के बाद जानसन डेविड गैरिक को साथ लेकर लंदन चला आया। 1738 में अत्यंत निर्धनता के बीच उसकी पहली पुस्तक ‘लंदन ए पाएम इन एटिमेशन आफ थर्ड सेटायर आफ जुनेबल‘ छपी, जिसे अच्छी लोकप्रियता तो मिली। लेकिन जानसन के लिए आर्थिक रूप से यह अधिक लाभप्रद न हो सकीं। 1744 में जानसन की दूसरी कृति ‘लाइफ आॅफ रिचर्ड‘ बाजार में आई।
लेखक बनना शायद जानसन का उद्वेश्य नहीं था। वह तो जैसे किस और ही काम के लिए इस दुनिया में आया था। उसके कल्पनाशील मस्तिष्क में सृजित होने वाली योजना 1747 में उसके द्वारा अंग्र्रेजी भाषा के शब्दकोष की घोषणा के रूप में सामने आई। इसके बाद वह बिल्कुल समर्पण भाव से इस कार्य में जुट गया। लगातार आठ बरसों तक वह अपनी सुध-बुध भूलकर शब्द-संकलन के कार्य में जुटा रहा। वह रात-रात भर जागकर शब्दकोष तैयार करने में जुटा रहता। इस दौरान वह खाने-पीने तक की सुध भूल बैठा। इसकी बीच 1752 में उसकी पत्नी पार्टर का निधन हो गया। जानसन अपनी पत्नी से बहुत स्नेह करता था। उसके निधन से जानसन को जर्बदस्त मानसिक आघात लगा। किंतु उसने शब्दकोष निर्माण के कार्य की गति शिथिल नहीं होने दिया। अंत में उसकी मेहनत रंग लाई और 1755 में दुनिया का पहला शब्दकोष प्रकाशित हुआ। इस शब्दकोष ने जानसन को सचमुच अमर कर दिया।
शब्दकोष के कारण जानसन को इतनी अधिक लोकप्रियता अर्जित हुई कि शब्दकोष के प्रकाशन के बीस सालों बाद 1775 में उसी आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने जानसन को ससम्मान ‘डाक्टर आॅफ ला‘ की मानव उपाधि से सम्मानित किया, जहां करीब पचास साल पहले धन के अभाव में उसे बिना डिग्री के खाली हाथ लौटना पड़ा था। इस जिंदादिल मस्तमौला शख्स ने साहित्य-संसार का शब्दकोष की परिकल्पना के रूप में अनुपम तोहफा दिया। सन् 1784 में 77 वर्ष की अवस्था में सेमुअल जानसन हमेशा के लिए इस संसार से चल बसे।