जूतों का जुल्म

बैंगदाद शहर में एक लालची सौदागर रहता था। उसका नाम अबू कासिम तंबूरी
था। यद्यपि वह धनी और मालदार था, फिर भी उसके कपड़े फटे-चिथड़े और गंदे रहते।
उसके बारे में सभी जानते थे कि वह साल में एक ही पोशाक खरीदता था। लेकिन फिर
भी उसकी पोशाक में वह बात नहीं थी, जो उसके बेहद पुराने फटीचर जूते में थी। उसके
जूते में लंबी कीलें ठुकीं हुई थी और चमड़े की असंख्य चिणियां लगी थीं। बगदाद शहर
के होशियार से होशियार मोचियों ने उन जूतों पर अपनी बढ़िया से बढ़िया कारीगरी खर्च
की थी। दस बरस में चिप्पियों-कीलों के भार से उसके पुराने जूते इस कदर भारी हो गये
कि बगदाद में लोग किसी चीज के भारीपन का जिक करते तो कासिम के जूतों से उनका
मुकाबला करते।
एक दिन कासिम शहर के मुख्य बाजार से गुजर रहा था कि एक सौदागर ने
उससे शीशे का माल खरीदने को कहा। कासिम ने उसका सारा माल खरीद लिया,
क्योंकि सौदा सस्ते में पट गया और कासिम को बहुत फायदा हुआ। कूछ दिनों बाद
कासिम को पता चला कि बगदाद के एक मशहूर इत्र-फरोश का दिवाला निकल चुका है,
इस वक्त उसके पास केवल इत्र-गुलाब ही बाकी है। कासिम ने बेचारे इनत्र-फरोश की
मजबूरी का फायदा उठाया और इत्र-गुलाब को उससे आधी कीमत में खरीद लिया। इसी
तरह कासिम ने एक और सौदागर की दुकान खरीदी और वह मालामाल हो गया। वह
इतना खुश हुआ कि नहाने का इरादा कर बैठा। इधर कई महीनों से वह नहाया ही नहीं
था, क्योंकि नहाने के लिए पानी का खर्च, साबुन का खर्च कौन देता? वह शहर के एक
खाली स्नान-घर में गया और अपने कपड़े उतारने लगा।
सड़क से गुजरने वाले उसके एक दोस्त ने तंबूरी से कहा, “बगदाद शहर में तुम्हारे जूतों की लोग खिलली उड़ाते हैं, नयी जोड़ी क्यों नहीं खरीद लेते? लेकिन कासिम पर उसकी बात का कोई असर नहीं हुआ। वह खीझकर बोला, “मेरे
पुराने जूते इतने बुरे नहीं हुए कि मैं नये खरीदूं।” और वह भुनभुनाता हुआ नहाने के लिए
हम्माम में घुसा।
उसी समय बगदाद के काजी महोदय भी हम्माम में नहाने के लिए आ गये। वे इघर
कपड़े उतार कर हौज में घुसे कि इधर कासिम बाहर निकला। कासिम ने अपने कपड़े
पहने, लेकिन पांव में पहनने के जूते नदारद थे। और उन पुराने जूतों की जगह नये जूते
रखे थे। कासिम ने झट सोच लिया, हो न हो, मेरा दोस्त जो अभी मुझे एक नयी जोड़ी
खरीदने की सलाह दे रहा था, इन्हें मेरे लिए रखता गया है, खुदा लंबी उसे उम्र दे। और
कासिम नये जूते पहन कर चल दिया।
जब काजी साहब नहा चुके और कमरे में कपड़े पहनने आये तो उन्होंने अपने नये
जूते गायब पाये। उनके गुलामों ने फौरन उसकी छानबीन की। पर बेकार। लेकिन जूते की
इस तलाशी में गुलामों को वह पुरानी जोड़ी मिल गयी, जिसे देखकर तुरंत जान लिया
गया कि यह अबू कासिम तंबूरी क॑ जूते हैं। सिपाही दौड़े-दौड़े गये और कासिम को पकड़
लाये। वह काजी के नये जूते पहने चला जा “रहा था और अभी घर भी नहीं पहुंच पाया
था।
काजी ने अपने जूते लिये और कासिम को चोरी के इल्जाम में जेलखाने में डाल
दिया। जुर्माने के तौर पर भारी रकम अदा करने को कहा। कासिम ने फौरन जुर्माने की
रकम अदा की और कैद से छुटकारा पाया। घर लौट कर कासिम को अपने पुराने जुतों
पर बड़ा गुस्सा आया। उसका घर टिगरिज नदी के किनारे था। उन्हें उसने गुस्से में नदी
में फेंक दिया।
एक दिन नदी में एक मछुआ जाल लेकर पकड़ रहा था। मछुए ने खुश होकर पानी
से जाल बाहर निकाला तो उसमें निकले कासिम के वे पुराने फटीचर जूते, जिसमें निकली
नुकीली कीलों से जाल इधर-उधर से फट गया था। उसे उन पुराने जूतों और उसके
लालची और मालदार मालिक कासिम पर बेहद गुस्सा आया। उसने ताव में जुतों को
कासिम के घर की खिड़की से अंदर फेंक दिया। दुर्भाग्यवश वे पुराने जूते इत्र-गुलाब की
शीशियों से टकरा गये, जिन्हें मिट॒टी के मोल कासिम ने इत्रफरोश से खरीदा था।
इत्र-गुलाब की शीशियां फूट गई । जूतों के कारण हुई बर्बादी देखकर कासिम के अफसोस
और गुस्से का कोई अंत नहीं था। उसने उन जूतों को काफी कोसा, और फावड़ा उठाया।
फिर अपने बगीचे में एक गड्ढा खोदा और उन जूतों को दफना दिया।
कासिम का पड़ोसी कासिम से मन-ही-मन जलता था। वह दौड़ा-दौड़ा नगर-दारोगा के पास गया ओर बोला, “कासिम को गड़ा हुआ खजाना मिला है और उसे कासिम बगीचे में गाड़ रहा है।”
कासिम का नाम ही काफी था। दारोगा के मुंह में पानी आ गया। उसने फौरन
सिपाहियों को भेजकर उसे गिरफ्तार कर लिया। इस बार कासिम को रिश्वत देनी पड़ी।
उसके पुराने जूते लौटाते हुए दारोगा ने कहा, “मैं अपने ऊपर किसी का अहसान
नहीं लेना चाहता।”
कासिम बौखला गया अपने पुराने जुतों पर। उसने विचार किया कि ,अपनी आंखों
के सामने उन्हें जलाकर राख कर देगा। लेकिन जुते अभी गीले थे। उसने उन्हें छत पर
धुप में सूखने के लिए रख दिया। तभी पड़ोसी का कुत्ता छत पर चढ़ आया और उसने
एक जूता मुंह में दबा लिया और छत की मुंडेर पर खेलने लगा। दुर्भाग्यवश वह सड़क पर
जाती एक रईस स्त्री के सिर पर जा गिरा।
जूते के अचानक गिरने से उस महिला को कड़ी चोट लगी और वह बेहोंश हो
गयी। उसका भद्र पति शिकायत लेकर काजी के पास पहुंचा। इस बार कासिम को
बामशक्कत कैद की सजा हुई, जुर्माने की भारी रकम भी देनी पड़ी।
यह रकम पहले से भी ज्यादा थी। वह उन जूतों को लेकर काजी से कहने लगा,
“इंसाफ–पसंद और गरीब परवर, मेरे हुजूर। मेरी सारी मुसीबतों की जड़ ये पुराने जूते हैं।
मेहरबानी करके ये हुक्म निकाल दीजिए कि इन जूतों की वजह से अब जो भी नुकसान
होगा, उसकी जिम्मेदारी मेरी नहीं है।”
काजी को उसकी परेशानी पर दया आ गयी। उसने उसे छोड़ दिया।
“सचमुच कंजूसी ठीक नहीं है।” कासिम ने सोचा और सड़क पर चला आया।