जीरा सिर्फ मसाला नहीं: उम्दा औषधि भी

भारत में हरेक परिवार के रसाईघर में आसानी से उपलब्ध हो जाने वाले मसालों में जीरा प्रमुख है। हमारे यहां जीरे का उपयोग भोजन को अधिक जायकेदार बनाने के वास्ते किया जाता है। भोजन को स्वादिष्ट बनाने में तो जीरे की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है ही, लेकिन इससे भी बढ़कर इसमें निहित औषधिय गुण हैं। जीरे का उपयोग आयुर्वेद की औषधियों में अति-प्राचीन काल से होता आ रहा है। आयुर्वेद के अनुसार जीरा, लघु, रूक्ष, कटु, मधुर, उष्णी वीर्य, कफ-नाशक, मूत्रक और गर्भाशय शोधक है। आयुर्वेद के मतानुसार ही यह श्वेत प्रदर एवं जीर्ण ज्वर, हृदय-रोग, रक्त-विकार, उदर-शूल, अजीर्ण, वमन, अरूचि आदि रोगों में उपयोगी है।
जीरे का वानस्पतिक नाम ‘क्यूमिनम साइमिनम‘ है। वैसे अलग-अलग भाषाओं में जीरे को विभिन्न नामों से जाना जाता है। इसे संस्कृत में जीरक, जरण, अजाजी, कणा, मराठी में ‘जिरें‘, गुजराती में ‘जीरूं शाकुन‘, बंगाली में ‘जीरे‘, अगं्रेजी में ‘क्यूमिन सीड‘ और हिंदी में ‘जीरा‘ कहा जाता है। जीरा मुख्यतः तीन प्रकार का होता है – सफेद जीरा, स्याह विलायती जीरा और काला जीरा। इनमें सफेद जीरा, जिसे प्रायः हर भारतीय परिवार में उपयोग में लिया जाता है, सर्वाधिक गुण-सम्पन्न माना गया है।
जीरे की उपज भारत में मुख्यतः उष्ण प्रदेशों राजस्थान, गुजरात, पंजाब, उŸार प्रदेश आदि में अधिक होती है। आसाम और बंगाल के कुछ हिस्सों में भी जीरे की खेती की जाती है।
जीरे में थाईमिन आइल 5.2 प्रतिशत तक होता है। इस उड़नशील तेल में ही जीरे की गंध और स्वाद निहित होता है। इसके अलावा जीरे में स्थिर तेल 10 प्रतिशत, पेन्टोसान 6.7 प्रतिशत तथा प्रोटीन के यौगिक आदि होते हैं।
जीरे को पाचक और दर्दनाशक माना जाता है। पाचन-क्रिया में गड़बड़ी से तथा मूत्र-पिंडो के विकार से यदि पेशाब साफ नहीं आता है, तो गिलोय और गोख्ररू में जीरा मिलाकर रोगी को देने से पेशाब खुलकर आने लगता है। जीरा आंत में मल की रूकावट को दूर करता है। इसके लिए जीरे का नियमित उपयोग आवश्यक है।
एक-एक ग्राम सौंठ और जीरे का चूर्ण शहद में मिलाकर सवेरे-शाम रोगी की देने से खांसी ठीक हो जाती है।
खूनी बवासीर में एक-एक चम्मच जीरा, सौंफ और धनिया एक गिलास पानी में डालकर उबालें। आधा पानी रह जाने पर इसे छानकर एक चम्मच देशी घी में मिलाकर सवेरे-शाम रोगी को सेवन कराने से दो-तीन दिन में रोगी को लाभ महसूस होगा। यदि दर्दपूर्ण बवासीर है, तो जीरा चैथाई चम्मच काली मिर्च में पीसकर शहद मिला लें। इसकी एक-एक चम्मच दिन में बार चाटें। बवासीर का दर्द और सूजन गायब हो जाएगी।
कच्चा पीसा हुआ जीरा और गुड़ एक-एक ग्राम मात्रा लेकर मिला लें। इसे दिन में तीन बार लेने से पुराना बुखार ठीक हो जाता है।
महिलाओं को प्रायः प्रदर की शिकायत रहती है। आधा-आधा तोला जीरे का चूर्ण और मिश्री का चूर्ण चावल की धोवन ( मांड ) में मिलाकर तीन सप्ताह तक नियमित सेवन करने से प्रदर-विकार दूर हो जाता है।
रतौंधी रोग में जीरा, आंवला, और कपास के पŸो समान मात्रा में लेकर पानी में पीसकर रात्रि को सोते समय मस्तक पर बांधे। यह प्रयोग एक माह तक करने से लाभ होगा।
यदि आपको खुजली अथवा पिŸाी की शिकायत है, तो जीरे को पानी में उबालकर उस पानी से नियमित स्नान करें। खुजली, फोड़े-फुंसियों आदि त्वचा रोगों में गर्म पानी में जीरा पीसकर लेप करने से भी लाभ होता है।
माताओं को स्तन में दूध की कमी होने पर जीरा भूनकर गर्म पानी के साथ दें। मसूढ़े फूलने, दांतों के दर्द या टीस होने पर सेंधा नमक और भुना हुआ जीरा बराबर मात्रा में पीसकर कपड़े से छान लें और मसूढ़ों पर रगड़ कर लार टपकाते रहें।
पथरी में जीरा और चीनी समभाग में लेकर पीसकर एक-एक चम्मच दिन में तीन दफा ठंडे पानी से लेना लाभकारी पाया गया है। पतले दस्त की शिकायत होने पर जीरे को भुनकर आधा चम्मच शहद मिलाकर दिन में तीन बार चाटें।
जीरे को उबालकर उस पानी से चेहरा धोने से चेहरे के आकर्षण में वृद्धि होती है।
इस प्रकार यह सुस्पष्ट है कि जीरा स्वाद के साथ अपने में स्वास्थ्य भी समाहित किए हुए है। इसलिए बेहतर सेहत के वास्ते जीरे का भरपूर सेवन कीजिए।