गुड़िया जैसी धुप

मसजिद में, मन्दिर में धूप,हंसती आंगन-भर में धूप।
सुबह – सवेरे लगती है जैसे
बैठी गुड़िया जैसी धूप।
कभी फैलती, कभी सिमटती,
वन में, गांव नगर में धूप।
हो जाती नाराज बहुत है
जाने क्यों दोपहर में धूप ।
शाम ढले बूढ़ी हो जाती,
फिरती डगर-डगर में धूप