कहानी गिनीज बुक की

गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकाॅर्ड्स पुस्तक का नाम अब लोगों के लिए अजनबी या अनजाना नहीं रह गया है। प्रतिवर्ष इस पुस्तक में कुछ न कुछ रिकार्ड्स बढ़ जाते हैं, जो इस पुस्तक की उपयोगिता को बढ़ाते हैं। लोग इस पुस्तक के तथ्यों को पढ़कर दांतों तले उंगली दबा लेते हैं।
पूरे विश्व में विभिन्न क्षेत्रों में मिसाल कायम करने वाले लोगों के नाम इस पुस्तक में अंकित किए जाते हैं। किसी व्यक्ति ने यदि बोलने में रिकार्ड कायम किया है, तो किसी ने हंसने व रोने में। किसी ने नृत्य में रिकार्ड कायम किया तो किसी ने गाकर। कुछ अर्सा पहलेें भारत में इंदौर के एक व्यक्ति ने रक्त दान करने में विश्व रिकार्ड कायम किया।
ऐसे में सहज ही यह जिज्ञासा उठती है कि गिनीज बुक की शुरूआत कैसे हुई? आखिर यह पुस्तक किसके दिमाग की उपज है?
सन् 1951 की बात है। आयरलैंड का एक धनी व्यक्ति सर ड्यू बीपर अपने दोस्तों के साथ बयान नामक चिड़ियों का शिकार करने निकला था। एकाएक उसकी आंखों के सामने से चिड़ियों का झुंड देखते ही देखते इतनी फुर्ती से निकल गया कि लोग कुछ नहीं कर सके। अपनी इस भूल पर ड्यू बीपर व उसके दोस्तों को काफी अफसोस हुआ।
शिकार से खाली हाथ लौटने पर सब इसी बहस में उलझे थे कि क्या बयान पक्षी यूरोप का सबसे तेज उड़ने वाला पक्षी है? बात आई-गई हो गई, कोई कुछ बता नहीं पाया।
तीन वर्ष बाद अगस्त 1954 में इस बात पर फिर बहस छिड़ी कि क्या तीतर बयान पक्षी से भी तेज उड़ने वाला पक्षी है? कई किताबें उलटने-पलटने के बाद उन्हें अपनी जिज्ञासा का उत्तर तो मिल गया, पर सर ड्यू बीपर के मन में एक बात बैठ गई कि इस तरह हजारों ऐसे लोग होंगे, जो इसी तरह के प्रश्नों से रोज उलझते होंगे। उनका उत्तर न मिलने पर वह मन मसोस कर रह जाते होंगे। उस समय कोई ऐसी किताब नहीं थी कि जिससे इस तरह के सभी विवादों के सभी प्रश्नों के उत्तर आसानी से मिल जाते ।
सर ड्यू बीपर के दोस्तों में नोरस और रास मैक हिवरटर दो भाई थे। वे लन्दन में एक न्यूज एजेन्सी चलाते थे, जिनका काम समाचार-पत्रों द्वारा पूछी गई जिज्ञासाओं का उत्तर देना था। सर ड्यू बीपर ने उनसे मिलकर विचार-विमर्श किया कि एक ऐसी किताब क्यों न लिखी जाए, जिससे इस तरह के बातों के उत्तर मिल सके।
बात दोनों भाइयों के समझ में आ गयी। उन्होंने अपनी ऐजेन्सी में उपलब्ध साधनों की सहायता से ‘गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकाॅड्स‘ नामक एक पुस्तक तैयार की। यह अगस्त 1955 में प्रकाशित हुई।
सन् 1974 में इस पुस्तक का नाम रिकार्डो में दर्ज किया गया क्योंकि इस वर्ष इसकी 2 करोड़ 39 लाख प्रतियां बिकी थीं। आज यह पुस्तक कम से कम 26 भाषाओं में प्रकाशित होती है।
पहले इसके संपादक अपने मित्रों परिचितों से पूछकर तथा अन्य पुस्तकों तथा अखबारों को पढकर रिकार्डस दर्ज करते थे। जैसे-जैसे इस किताब के सम्बन्ध में लोगों को मालूम हुआ, वे खुद संपादकों के पास इस तरह की सूचनाएं भेजने लगे। आज स्थिति यह है कि दुनिया के सभी देशों के लोग यह चाहते हैं कि वे एसा काम करें, जिससे उनका नाम भी इस पुस्तक में शामिल कर लिया जाए।
इस पुस्तक में अपना नाम दर्ज कराने के लिए जरूरी है कि आप कोई ऐसा काम करें, जो अब तक किसी ने न किया हो।