कौन थे इलोजी देवता? होलिका – इलोजी की प्रेम कहानी का इतिहास

(Iloji history in hindi – इलोजी का इतिहास – इलोजी और होलिका की कहानी)
विषय सूची
परिचय
आइये जानते है इतिहास का इलोजी और होलिका से उनके रिश्ते के बारे में के बारे में। राजस्थान में इलोजी एक लोकप्रिय ग्राम देवता माने जाते हैं। इनको होली का देवता भी माना जाता है। इलोजी बाबा के नाम से भी मशहूर है। शहरों और कस्बों के अनेक चैराहो पर ईलोजी की प्रतिमा प्रतिष्ठित की जाती है। प्रचलित किवदंती के अनुसार ईलोजी क्रूर शासक हिरण्यकश्यप की बहिन होलिका के होने वाले पति थे। असुर राज हिरण्यकश्यप की बहन होलिका और पडोसी राज्य के राजकुमार इलोजी एक दूसरे को बहुत चाहते थे।
इलोजी स्वस्थ, सुन्दर और गठीले शरीर के रूप में साक्षात कामदेव प्रतीत होते थे। होलिका भी बहुत ही सौंदर्य से परिपूर्ण देवी थी। दोनों की जोड़ी प्रजा को बहुत भाती थी। लेकिन उनके नसीब में कुछ और ही लिखा था।
होलिका और प्रह्लाद
प्रह्लाद भगवान विष्णु का परमभक्त था, इस कारण अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यप बहुत परेशान था। उसने कई बार प्रह्लाद को ख़त्म करने की कोशिश की मगर असफल रहा। होलिका राक्षस कुल के महाराज राक्षस हिरण्यकश्यप की बहन थीं। उन्हें वरदान में ऐसी दुशाला (शॉल) प्राप्त थी कि जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकती थी। तभी हिरण्यकश्यप को होलिका का वरदान याद आया और उसने उन्हें प्रहलाद यानी कि होलिका के भतीजे, को लेकर हवन कुंड में बैठने का आदेश दिया।
भाई के इस प्रस्ताव पर होलिका ने मना किया, तब हिरण्यकश्यप ने उसे कहा की वो इलोजी और उसका विवाह तभी होने देगा जब वह प्रह्लाद को ख़त्म करने में उसकी मदद करेगी, दुःखी मन से वह प्रहलाद को लेकर अग्नि कुंड में बैठ गईं। उसी समय तुरंत दुशाला होलिका के शरीर से उड़कर भक्त प्रहलाद पर गिर गया।हुआ कुछ यू कि होलिका जल कर भस्म हो गई और प्रहलाद को जरा भी आंच न आई। तब से हर साल होली खेलने के पहले होलिका दहन किया जाता है।

दूल्हा बने कुँवारे इलोजी का इतिहास
दरअसल इलोजी दूल्हे के वेश में सज-संवरकर बड़ी-सी बारात लेकर उसी दिन होलिका से ब्याह रचाने पहुंचे थे।
भक्त प्रहलाद तो सौभाग्यशाली रहा कि उसने क्रूर हिरण्यकश्यप पर जीत हासिल की, मगर बदकिस्मत रहे इलोजी , जिन्होंने अपनी भावी दुल्हन होलिका को पाने से पहले ही खो दिया। इलोजी ने जब सुना कि होलिका अग्नि-स्नान करते समय जल मरी है, तो उन्हें बड़ा दुख हुआ। होलिका से बिछोह के गम में ईलोजी ने जिंदगी भर शादी नहीं की। उन्होंने दूल्हे के वेश में होलिका की राख को अपने बदन पर मल कर तसल्ली की। कहा जाता है कि इसी वजह से होली जलने की रात का दूसरा दिन धूल-भरी होली के रूप में गुलाल आदि उड़ाकर मनाया जाता है।
इलोजी की प्रतिमा
इलोजी का निर्माण ईंट, पत्थर, सीमेंट आदि से होता है। इसके बाद सफाई से प्लास्तर द्वारा आदमी की आकृति में तब्दील कर दिया जाता है। ईलोजी का शरीर भारी-भरकम होता है। गोल-मटोल चेहरे वाले ईलोजी की आंखे काफी चमकीली होती हैं और सिर पर यह खूबसूरत साफा धारण किए होते हैं। हाथ-पैर कंगनों से भरे होते हैं। इनके वस्त्रों पर रंग के छींटे कर दिए जाते हैं।
सिर के साफे को दूल्हे की भांति पहनाया जाता है और उसके ऊपर कलगी जरूर लगाई जाती है। गले में फूलों का हार होता है। इस तरह ईलोजी की प्रतिमा काफी सजी-संवरी होती है। इलोजी को लिंग का देवता भी कहा जाता है। इनकी प्रतिमा वीर पुरुष के रूप में गुप्तांग के साथ, चेहरे पर अभिमान के साथ बैठे हुए दिखाया जाता है।
पौराणिक मान्यताएं
राजस्थान में पुत्रप्राप्ति की आशा में महिलायें इलोजी देवता के लिंग की पूजा की जाती है। मारवाड़ में इन्हे मजाकिया देवता और छेडछाड के अनोखे लोक देवता के रूप में मान्यता अर्जित है।
एक बार एक सेठ ने इलोजी की मनौती मांगी कि उसके पुत्र हुआ तो वह उनके जीवित भैंसे की बलि चढ़ाएगा। सेठ के पुत्र हो गया। सेठ ने मनौती के अनुसार, भैंसे की बलि नहीं चढ़ाई, बल्कि भैंसे को इलोजी की प्रतिमा से बांध दिया। थोड़ी देर बाद भैसे ने ताकत लगाई और वह रस्सी सहित ईलोजी की प्रतिमा को उखाड़कर घसीटता हुआ दौड़ने लगा। इलोजी की यह दुर्दशा एक महिला ने देखी तो वह हंस-हंसकर ईलोजी का मजाक उड़ाने लगी। तब ईलोजी की प्रतिमा बोल पड़ी -‘तू तो मठ में बैठी मटका करे है। सेठ ने बेटा कोनी दिया। मैं दिया, जाको म्हारो हाल देख।
नवविवाहित जोड़े भी इलोजी के दर्शनार्थ आते हैं। नववधू इलोजी को गले लगाती हैं, कहा जाता हर स्त्री पर उनका पहला अधिकार है, वो हमेशा उनके सुख दुःख में साथ देते हैं ।
‘इस तरह इलोजी को हास्य-व्यंग्य का प्रतीक मान लिया गया।बहरहाल, इलोजी अपनी अजीबोगरीब आकृति से हर किसी का मन मोह लेते है। राजस्थान में अनेक शहरों में इलोजी मार्ग, इलोजी मार्केट इलोजी चौक आदि है, जो इनकी लोकप्रियता के ही परिचायक हैं।
इतिहास ने इलोजी को सिर्फ राजस्थान और हिमाचल प्रदेश तक ही समेट कर रख दिया, जो लोग हीर – राँझा, लैला – मजनू की बातें करते है, उनको याद दिला दिया जाये की इस भारत की धरती पर अथाह प्रेम की इबादत लिखने के लिए इलोजी – होलिका की गाथा हमेशा अमर रहेगी।
इलोजी का मंदिर कहां स्थित है
होलिका और इलोजी का क्या सम्बन्ध था ?
होलिका और इलोजी प्रेमी – प्रेमिका थे, उनका विवाह निश्चित हुआ था
इलोजी देवता कौन हैं ?
इन्हे होली के देवता भी कहा जाता है, ये राजस्थान के लोक देवता हैं. ये हिरण्य कश्यप की बहन होलिका से बहुत प्रेम करते थे, इलोजी राजा हिरण्य कश्यप के बहनोई थे।
होलिका दहन क्यों किया जाता है ?
हिरण्यकश्यप ने होलिका को जब आदेश दिया कि वह प्रहलाद को लेकर अग्नि कुंड में बैठजाये । उसी समय तुरंत दुशाला होलिका के शरीर से उड़कर भक्त प्रहलाद पर गिर गया।हुआ कुछ यू कि होलिका जल कर भस्म हो गई और प्रहलाद को जरा भी आंच न आई। तब से हर साल होली खेलने के पहले होलिका दहन किया जाता है।
इलोजी का मंदिर कहाँ हैं ?
इलोजी के कई मंदिर हैं, इलोजी का एक मंदिर ज़र्दा बाजार (पाली) में हैं।
होलिका दहन 2022
कब है ?
गुरुवार, 17 मार्च