कार्य की योजना बनाए,योजना को कार्य न बनाएं

किसी भी कार्य की सफलता के लिए कार्य प्रारंभ किये जाने से पूर्व
उसकी योजना बनाना आवश्यक है। योजना बनाकर उसके अनुरूप कार्य करने से
अभीष्ठ की प्राप्ति की संभावना अधिक होती है।
हमारे एक मित्र कोई भी नया काम शुरू करने से पूर्व जोर-शोर से उसकी
योजना बनाते हैं। उसके बारे में संबंधित लोगों से, मित्रों से, रिश्तेदारों से
सलाह-मशवरा करते हैं। कार्य की फाइल बनाकर ढेर सारे कागज उसमें नत्थी
करते हैं। गर्ज यह कि कार्य से अधिक उनकी कार्य की योजना बनाने में
दिलचस्पी रहती है। योजना बनाने में वह इतने मशगूल हो जाते हैं कि योजना के
अनुसार कार्य नहीं करते और सिर्फ कागजी योजनाएं ही बनाते रहते हैं। आज
स्थिति यह है कि वह कई नये कार्य शुरू कर बंद कर चुके हैं और परिचितों में
वह एक ‘असफल व्यक्ति’ के रूप में जाने जाते हैं।
जाहिर है, कार्य के लिए योजना बनाना अच्छा है, मगर जब स्थिति यह हो
जाए कि योजना बनाना ही कार्य बन जाए तो सफलता की उम्मीदें घूमिल हो
जाती हैं।
क्या आप भी योजना बनाने में जुनून की हद तक लग जाते हैं? यदि हां
तो सचेत हो जाइए। योजना बनाइए, जरूर, मगर योजना को ही कार्य बनाने की
मूल मत कीजिए। अन्यथा आपका व्यावहारिक पक्ष नेपथ्य में चला जाएगा और
आप महज योजना ही बनाते रह जाएंगे।
योजना बनाने में आवश्यकता से अधिक वक्त जाया करने से मूल कार्य
प्रभावित होता है। दरअसल हर नया कार्य आपसे अधिक वक्त देने की मांग करता
है। मगर योजनाएं बनाते रहने से आपके पास मूल काम को देने का वक्त सीमित
हो जाएगा।
वैसे भी कागजी योजनाएं अधिक कारगर नहीं होती। किसी भी कार्य में
स्थिति, परिस्थिति के मुताबिक निर्णय लेने होते हैं।
कई बार तो कार्य के साथ-साथ ही कार्य की प्रगति के अनुसार आगे की
योजना का निर्धारण होता चलता है। ऐसे में कार्य शुरू करने से पहले मेहनत
और वक्त लगाकर बनाई गई योजना केवल फाइल की शोभा ही बढ़ाती है।
आज की तेज रफ्तार जिंदगी में वक्त बहुत कीमती है। आप योजनाएं
बनाते रहने में ही इसे गंवाते रहे तो हो सकता है, अपने प्रतिद्वंद्वियों से पिछड़
जाएं। वक्त की रफ्तार में पिछड़ने से आपका दौड़ में बने रहना भी मुश्किल हो
सकता है।
हम यह नहीं कहते कि कार्य की योजना बनाइये ही मत। आप कम समय
में योजना तैयार कर लें और तत्काल उसे असली जामा पहनाना भी शुरू कर दें।
साथ ही कार्य के दौरान परिस्थितियों के अनुसार आगे की रूपरेखा तैयार करते
रहें। अंत में, दुष्यंत कुमार की दो पंक्तियां –
स्याही से इरादों की तस्वीर बनाते हो,