इंजीनियर प्राणी – बीवर

जलस्थली प्राणी है ‘बीवर’। यह रोडेंशिया श्रेणी के अंतर्गत आता है। यह
अधिकतर तो जल में रहता है, लेकिन भूमि पर भी अपना कार्य करता है तथा भोजन
करता है। इसके कृतंक दंत रूखानी के समान तथा बहुत मजबूत होते हैं। इन दातों
उपस्थित एनैमल चाकू की घार के समान तेज होता है। जिसके द्वारा यह भोजन को
कुत्तरने का कार्य करता है। इसकी दुम लंबी, चपटी तथा पक्षी के समान होती है और
एक पतवार का कार्य करती है। इसकी दुम पर शल्क भी होते है। पैरों में पांच-पांच
अंगुलिया होती है और अंगुलियों पर नाखून होते हैं। पिछले पैरों की अंगुलिया में
पादजाल भी होता है।
गर्मी के दिनों में इसे अपने आप चल जाता है कि नदी का पानी कम होने
वाला है। इस कारण यह नदी में बांध बांधता है, जिससे पानी रूका रहे और कम होने
न पाये। इस बांध को बनाने के लिए यह नदी के किनारे वाले वृक्षों के तनों को अपने
मजबूत दांतों से काटना आरंभ करता है और कुतर-कुतर कर तने में गडढा बनाता है।
इस प्रकार के गड्ढों को यह नदी की ओर गहरा करता रहता है, जिससे वृक्ष नदी की
ओर ही गिरे। इस प्रकार नदी के किनारे के वृक्षों को यह गिराता है। इसके पश्चात्
उन वृक्षों को काटता है, जो नदी से दूर होते है। गिरे वृक्षों के यह फिर एक-एक,
दो-दो मीटर के टुकड़े काटता है। इसके पश्चात् इन कटे टुकड़ों की छाल उतारता
है। यह छाल इसका भोजन है। नदी के किनारे के दुकड़ों को यह नदी में तैरा देता है
और उन वृक्षों के टुकड़ों को जो नदी से दूर होते हैं, लाने के लिए लंबी-लंबी नालियां
खोदता है। इन नालियों को यह नदी से जोड़ देता है और इनको इतनी गहरी करता
है कि नदी का पानी इन नालियों में आ सके। फिर यह दूर पड़े लट्ठों को ठेल कर
इन्हीं पानी से भरी नालियों में तैरा देता है और लट्ठे नदी में पहुंच जाते हैं।
लकड़ी के लट्ठे नदी में उतराते रहते हैं। फिर यह एक-एक लटूठे को पानी
के नीचे घसीट-घसीट कर ले जाता है और तले में रख कर उसके ऊपर मिट्टी,
कीचड़ तथा पत्थर लाद देता है, जिससे लट्ठे उत्तरा न सकें। इस प्रकार लट्ठे नदी
के एक तट से दूसरे तट तक ललें में बिछा दिये जाते हैं। इसके बाद इस तह के
ऊपर दूसरी तह बिछायी जाती है। यह बांध धीरे-धीरे ऊंचा होता जाता है। इस बांध
की लंबाई करीब दो सौ मीटर तथा ऊंचाई तीन मीटर होती है। इस प्रकार के बांध
बना लेने से नदी का पानी कम नही होने पाता और बीवर परिवार को गर्मी के दिनों में
कष्ट नहीं उठाना पड़ता है। कितने आश्चर्य की बात है कि ये छोटे-छोटे प्राणी इतना
लंबा बांध तैयार करते हैं।
बांध के अतिरिक्त ये इन्हीं लट्ठों द्वारा अपने मकान भी बांध के निकट बनाते
हैं। मकानों की संख्या अधिक होती है। ये अपने मकानों की छतों को नीचे से प्लास्टर
भी करते हैं।
इनके मकानों को ‘लॉज’ कहते है। प्रत्येक मकान में मां-बाप तथा बच्चे रहते
हैं। बच्चे बड़े होने पर बाहर निकाल दिये जाते है और वे फिर अपना मकान अलग
बना लेते हैं। बांध तथा मकान बनाने का कार्य सब मिलकर करते हैं। उन्हें ‘इंजीनियर’
कहना उचित है।