अनुशासित चींटियों का एक दल

अफ्रीका के जंगलों में चींटियों की एक विशेष प्रजाति पायी जाती है। ये चींटियां लाखो-करोड़ों की संख्या में समूह बनाकर रहती हैं। इन चींटियों के गहन वैज्ञानिक अध्ययन के बाद जो निष्कर्ष निकाले गये हैं, वे अत्यंत रोचक तथा चैंकानेवाले हैं। इन चींटियों की अलग से अपनी एक संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था है, जिनमें मजदूर, इंजिनियर, अंगरक्षक, भोजन सामग्री ढोने वाली चींटियां आदि कई वर्ग हैं। चींटियों का प्रमुख रानी होती है, जो मात्र अंडे देने का कार्य करती है। अफ्रीका के जंगलों में रहने वाले पशु और मनुष्य इन चींटियों से ही सबसे अधिक खौफ खाते हैं। जंगलों में चरते हुए पशुओं को ये चींटियां करोड़ों की तादाद में आकर चारों तरफ से घेर लेती हंै और आधे घंटे से भी कम समय में घोड़े और बैल जैसे जानवर को खत्म कर देती है। घटना-स्थल पर पशु की मात्र हड्डियां पड़ी मिलती हैं। यह चींटी-दल इतने गुपचुप और सुनियोजित तरीक से हमला करता है कि शिकार के बचने या भाग निकलने का कोई अवसर ही नहीं मिल पाता।
वैसे तो ये चींटियां अंधी होती हैं, किंतु अपने सिर पर लगे दो मोटे तनों, जिन्हें ‘एंटीना‘ कहा जाता है, के द्वारा अपने आसपास की जानकारी निरंतर प्राप्त करती रहती हैं। इनमें सूंघने की विलक्षण शक्ति होती है। जब चींटी-दल अपने अभियान पर जा रहा होता है, तो आगे की पंक्ति की चींटियां एक विशेष प्रकार का अम्ल अपने पीछे छोड़ती चलती है। इस अम्ल की गंध से पीछे आ रही चींटियां अपना रास्ता निर्धारित करती हंै।
अभियान के दौरान रास्ते में यदि कोई पानी का नाला या नदी आ जाये तो इंजीनियर चींटियां एक-दूसरे के पैरों में पैर फंसाकर पुल बना देती हैं, जिस पर होकर पूरा चींटी दल गुजर जाता है और उसके बाद चीटियों का यह पुल सिमटने लगता है। गर्मी और धूप के दौरान इंजीनियर चींटियां रास्ते पर एक मिट्टी की खोखली परत बिछा देती हैं, जिसके नीचे पूरा चींटी दल आराम से अपना रास्ता पार करता है।
इन चींटियों में प्रमुख चींटी को अंगरक्षक चींटियां हमेशा घेर कर चलती हैं। चींटी दल का अपना कोई घर नहीं होता। घूमते हुए खाते रहना ही इनका काम है। ये रात में नहीं चलतीं। रात्रि-विश्राम के समय ये रानी चींटी को घेर कर एक गोल घेरा बना लेती हैं। सुबह होते ही पुनः अपने अभियान पर निकल पड़ती हैं। सोलह दिन तक लगातार घूमते रहने के बाद सत्रहवें दिन यह चींटी दल अपना शिविर लगाता है क्योंकि सोलह दिन की अवधि के बाद रानी चींटी को अंडे देने होते हैं।
शिविर-निर्माण में मजदूर चींटियां विशेष भूमिका अदा करती हैं। ये किसी विशाल वृ़क्ष पर चढ़कर एक दूसरे की कमर में पैर फंसाकर इस प्रकार घेरे बना लेती हैं कि वह अन्य चींटियों के लिए कोठरियों का काम करें। इसके बाद रानी चींटी सबसे अधिक सुविधाजनक कोठरी में अंडे देती है, जो कम-से-कम एक हजार होते है। अंडे देने के बाद अन्य चीटियां उन अंडो को सेवा गृह तक लाती हैं, जहां अंडों के चारों तरफ रेशम-सा मुलायम कोया बुन देती हैं। करीब पंद्रह दिन बाद उन अंडों में से बच्चे निकल आते हैं। बच्चों की पर्याप्त देखभाल की जाती है। इस सारी प्रक्रिया के बाद चींटी दल पुनः अपनी यात्रा पर रवाना हो जाता है।
पूर्ण अनुशासित और नियमित दिनचर्या के माध्यम से यह चींटी दल निरंतर यात्राएं करता रहता है। इनकी भयानकता और अनुशासनप्रियता के कारण इन्हें ‘सैनिक चींटी‘ के नाम से भी जाना जाता