Alcohol | शराब

महान चिंतक ग्लेंडस्टन के अनुसार , युद्ध , अकाल और महामारी इन तीनों ने मिलकर मानव – जाति का इतना अहित नहीं किया , जितना कि अकेली शराब ने किया है । शराब का इतिहास कितना पुराना है , कोई नहीं जानता किंतु यह तय है कि इसका चलन अनादि – काल से चला आ रहा है । प्राचीन ग्रंथों में इसे देवताओं का पेय मानकर ‘ सोम -रस ‘ की संज्ञा दी गई ।
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जीवन शक्ति को नष्ट करती है शराब(Alcohol)
वस्तुतः शराब कोई प्राकृतिक वस्तु नहीं है बल्कि प्रकृति – प्रदत्त अमूल्य वस्तुओं को नष्ट करके अप्राकृतिक रूप से तैयार की हुई वस्तु है । हर किस्म की शराब में अलकोहल नामक घातक विष अलग – अलग अनुपात में उपलब्ध रहता है , जो जीवन – शक्ति को नष्ट करने वाला पदार्थ है ।
शराब – सेवन के आर्थिक , सामाजिक और पारिवारिक दुष्प्रभावों का दायरा अत्यंत व्यापक है । कुछ दशक पहले तक ‘ शराब – सेवन ‘ की लत निम्न वर्ग तक ही सीमित थी किंतु अब मदिरा – पान मध्यम एवं उच्चवर्ग तक पहुंचकर ‘ स्टेटस – सिंबल ‘ बनता जा रहा है । परिवार का सुख – चैन नष्ट करने के अलावा यह लत मनुष्य के स्वास्थ्य को किस हद तक नुकसान पहुंचाती है , आदमी को शारीरिक दृष्टि से एकदम खोखला बना देने वाली यह शराब कितनी खतरनाक है , यह एक गंभीर चिंता का विषय है ।
जिगर , मस्तिष्क और हृदय को अपरिमित क्षति पहुंचाती है शराब(Alcohol) !

शराब पीने के कुछ ही देर बाद उसमें मौजूद अलकोहल नामक विष रक्त में शामिल होकर रक्त – संचार कोशिकाओं के माध्यम से सारे शरीर में फैल जाता है । शरीर एकाएक इस विजातीय तत्व को स्वीकार नहीं कर पाता । इस जहर को शरीर से बाहर निकालने के लिए सम्पूर्ण शरीर को अधिक सक्रियता से कार्य करना पड़ता है ।
गुर्दे अधिक तेजी से कार्य करते हैं , ज्यादा मात्रा में पेशाब बनाते हैं और शराब का कुछ अंश पेशाब के माध्यम से शरीर से बाहर निकल जाता है । पसीने के साथ भी बहुत थोड़े अंशों में शराब शरीर से बाहर आती है । पी गई मदिरा का अधिकांश हिस्सा शरीर के सबसे सुकोमल एवं संवेदनशील भाग जिगर में पहुंचता है और यही कारण है कि अधिक मदिरापान करने वाले व्यक्ति अक्सर जिगर की बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं।
मदिरापान से मस्तिष्क को भी अपरिमित क्षति पहंचती है । मदिरा मस्तिष्क के कोषों को निष्क्रिय और धीरे – धीरे नष्ट करती है । लोगों में यह आम धारणा है कि मदिरा – पान से मस्तिष्क में स्फूर्ति और प्रेरणा उत्पन्न होती है , किंतु वस्तुस्थिति इसके एकदम विपरीत है । सामान्य अवस्था में तो मनुष्य अपने विवेक से काम करता है लेकिन मदिरा – पान के पश्चात मस्तिष्क आदमी की शारीरिक व मानसिक गतिविधियों पर से अपना नियंत्रण खो बैठता है , परिणामस्वरूप आदमी उलजलूल व्यवहार करने लगता है ।
निरंतर मदिरापान करने वाले व्यक्तियों में स्मरण शक्ति का ह्रास होना , दिमागी तौर पर कमजोरी का अनुभव करना , निर्णय क्षमता का अभाव होना , चिड़चिड़ापन तथा आपराधिक प्रवृति की ओर अग्रसर होने जैसी बातें स्थायी रूप से उत्पन्न हो जाती हैं । मस्तिष्क के कोष एक बार क्षतिग्रस्त होने के बाद शरीर के अन्य कोषों की तरह पुनः सकिय नहीं किए जा सकते । इस प्रकार मदिरा – पान से मस्तिष्क को स्थाई रूप से गंभीर क्षति पहुंचती है।
शराब मनुष्य के हृदय को भी घातक रूप से प्रभावित करती है । चूंकि शराब पीने के बाद वह रक्त संचार द्वारा रक्त वाहिकाओं के माध्यम से शरीर में प्रवाहित होती है और समूचे रक्त संचार तंत्र को अस्त – व्यस्त कर देती है , जिसका सीधा असर दिल पर पड़ता है । दिल पर पड़ने वाला यह अतिरिक्त दबाव रक्तचाप , रक्ताल्पता , रक्त – विकार आदि रोगों को जन्म देता है ।
शराब (Alcohol) से अन्य नुकसान

इसके अतिरिक्त , निरंतर मदिरा – पान यकृत , पेट , गुर्दा , यौन क्षमता , स्नायु – तंत्र , फेफड़ों आदि अंगों को भी बेहद नुकसान पहुंचाता है । मदिरा पान करने वाले व्यक्ति प्रायः अपच , अनिद्रा , पौरूष – हीनता आदि रोगों के शिकार हो जाते हैं । कुल मिलाकर मदिरा – पान शरीर को एकदम जर्जर और खोखला बना देता है । अधिक मात्रा में निरंतर शराब पीने से मनुष्य की मृत्यु तक हो जाती है ।
शराब का असर मात्र पीने वाले पर ही नहीं पड़ता , बल्कि उसकी होने वाली संतानों को भी दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं । शराबी माता – पिता की संतानें प्रायः शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर , रोग – ग्रस्त , और कभी – कभी विकलांग तक उत्पन्न होती हैं । गर्भवती स्त्री द्वारा पी गई शराब गर्भस्थ शिशु पर अत्यंत घातक प्रभाव छोड़ती है ।
शारीरिक दृष्टिकोण से तो मदिरा – पान के अपने खतरे हैं ही , साथ ही शराब की लत के शिकार लोगों का सामाजिक व पारिवारिक जीवन कितना भयावह होता है , यह तथ्य किसी से छुपा हुआ नहीं है । शराब के कारण होने वाले गृह – कलह में कितनी ही जिंदगियां तबाह हो गईं और कितने ही घर बर्बाद हो गए ।
छोड़ी जा सकती है शराब(Alcohol)

इतना सब कुछ होने के बाद भी आखिर आदमी इस विनाशकारी मादक पदार्थ से मुक्ति प्राप्त करना क्यों नहीं चाहता ? वस्तुतः शराब से छुटकारा पाना असंभव नहीं है । बस , जरूरत है – आत्म – नियंत्रण और आत्म – शक्ति की । आजकल शराबखोरी की लत से छुटकारा दिलाने के लिए मनोवैज्ञानिक उपचार किया जाता है , जिसके अंतर्गत शराबी व्यक्ति की मानसिकता को बदलने की कोशिश की जाती है ।
इसके अतिरिक्त कुछ ऐसी औषधियों की भी खोज हुई है , जो शराब की लत छुड़ाने में मददगार होती है । होम्योपैथी नामक चिकित्सा पद्धति के जनक डा 0 हेनीमेन ने इस लत को छुड़ाने हेतु कई औषधियों का आविष्कार किया , जिनमें सिनकोना रूबरा , सल्फर , क्यूरक , ऐचिना आदि प्रमुख हैं । इन दवाओं का सेवन कुशल चिकित्सक के निर्देशन और परामर्श से किया जाना चाहिए ।
‘अल्कोहालिक्स एनानिमस ‘ नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था विश्व में शराबखोरी की लत छुड़ाने के लिए अत्यंत सकियता के साथ कार्यरत है । इसका सदस्य बनने के लिए किसी प्रकार की फीस आदि देने की आवश्यकता नहीं है । मात्र आप में शराबखोरी की लत से मुक्त होने की इच्छा ही इसकी सदस्यता प्राप्त करने के लिए पर्याप्त है । यह हर स्तर पर व्यक्ति को शराब छोड़ने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करती है । भारत में भी मुम्बई में इस संस्था की शाखा कार्यरत है । इच्छुक व्यक्ति यहां संपर्क कर सकते हैं ।
मूलतः आदमी के लिए शराब छोड़ने के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति ही सबसे बड़ी व एकमात्र जरूरत है ।
सबसे पहले शराब पीने वाले खुद यह तय करे कि अब मैं शराब नही पीउँगा तो चिकित्सक इनकी मदद कर सकते है। देखा जाता है कि परिवार वाले तो उनके इलाज के लिए तैयार रहते है किन्तु व्यक्ति स्वयं इलाज नहीं कराना चाहता। ऐसी हालत में चिकित्सक का प्रयास सार्थक हो ही नहीं सकता।
शराब (Alcohol) छोड़ने के उपाय
मनश्चिकित्सा केन्द्रों में नशा विमुक्ति केन्द्र होते है जहाँ डी-टोक्सीफिकेशन द्वारा शराब छुड़ाने तथा उसके उपरांत मोटिवेशन थैरपी, फिजियोथैरपी तथा ग्रुप थैरपी द्वारा इससे निजात पाने की कोशिश की जाती है। स्वयं व्यक्ति के प्रबल इच्छाशक्ति तथा परिवार के सहयोग तथा चिकित्सकों के सतत् प्रयास से सफलता पूर्वक इसका इलाज संभव है।