भीड़ से अलग

तेज रफ्तार जिंदगी
में
भौतिकता के पीछे
भागता इंसान ,
जब अंततः हांफकर
थककर चूर हो
पस्त सा हो जाता है
कितना निरीह, अकेला
और बेचारा लगता है ।
काश !
इस दौड
इस भीड से अलग होकर
सोचे वह
कि
कुछ पाने की ललक में
कितना कुछ खो दिया है उसने !
अपना हिसाब- किताब
बेलेन्स शीट
ईमानदारी से
बनाये वह तो
शायद
इस अंधी दौड
फिर कभी शामिल
नही होना चाहे ।
मगर तेज रफ्तार
मशीनी जिंदगी
भला उसे
कुछ देर की
मोहलत भी क्यों कर दे ?